Another excerpt from my old diary:
साहिल... (Sept 2001)
आज खुद को आईने में देखा तो,
यूँ ही उस 'साहिल' का ख्याल आ गया......
जो बरसो से तनहा खड़ा,
अपनी ठहरी हुई ज़िन्दगी के पल गिनता है ....
लहरें उसके पास आती तो है, पर अगले ही पल,
उसे तनहा छोड़ वापस लौट जाती.....
अक्सर लोग भी आते,
समंदर की खूबसूरती को निहारते,
कुछ देर उसकी चट्टानों पर बैठते,
और दिन ढलते ही वापस लौट जाते,
और वो 'साहिल' फिर से अकेला हो जाता....
समंदर के पानी पर जब,
रात की काली परछाइयाँ लहराती,
तब भी वो 'साहिल',
सूनेपन की चादर ओड़े,
सिमटा सा, सहमा सा खड़ा रहता....
न जाने उसे किसका इंतज़ार है ,
शायद वो खुद भी नहीं जानता,
पर सदियों से बस इंतज़ार करता है,
सिर्फ इंतज़ार......
साहिल... (Sept 2001)
आज खुद को आईने में देखा तो,
यूँ ही उस 'साहिल' का ख्याल आ गया......
जो बरसो से तनहा खड़ा,
अपनी ठहरी हुई ज़िन्दगी के पल गिनता है ....
लहरें उसके पास आती तो है, पर अगले ही पल,
उसे तनहा छोड़ वापस लौट जाती.....
अक्सर लोग भी आते,
समंदर की खूबसूरती को निहारते,
कुछ देर उसकी चट्टानों पर बैठते,
और दिन ढलते ही वापस लौट जाते,
और वो 'साहिल' फिर से अकेला हो जाता....
समंदर के पानी पर जब,
रात की काली परछाइयाँ लहराती,
तब भी वो 'साहिल',
सूनेपन की चादर ओड़े,
सिमटा सा, सहमा सा खड़ा रहता....
न जाने उसे किसका इंतज़ार है ,
शायद वो खुद भी नहीं जानता,
पर सदियों से बस इंतज़ार करता है,
सिर्फ इंतज़ार......
beautiful...am loving these poems from your old diary :)
ReplyDeleteThnx re for your motivation....you see I am blushing now
Delete;-)