My Old diary strikes again:
गुजरे पल ..... (Apr,2001)
यह ख्याल अनजाने ही दिल में आता है,
बीते दिनों में लौट जाऊं यही तो जी चाहता है....
तन्हाई में उन दिनों की याद सताती है कभी- कभी,
जब हम दोनों थे एक दूजे के लिए अजनबी .....
शख्शियत तुम्हारी और बेहतरी से समझना चाहते थे,
और इसी कोशिश में और भी करीब आ जाते ...
कुछ कशिश, कुछ कसक, कुछ तड़प , कुछ झिझक ,
कुछ हंसी, कुछ शर्म , कुछ अदा, कुछ भरम ....
अनकहे ही सारी बातें हमारे बीच कही जाती ,
साथ गुजरे उन लम्हों की याद आज भी दिल को छू कर जाती।.....
पर आज,
जब हम दोनों ही एक खुली किताब बन चुके है,
करीब रहकर भी लगता है कोसों दूर जा चुके है....
दुनियादारी की तराजू में अब रिश्तो को तोलने लगे है,
फायदा हुआ की नुक्सान यह हिसाब जोड़ने लगे है......
बेहतर तो था वो वक़्त,वो ज़माना जो अब भी याद आता है...
फिर से दोनों का दिल अजनबी बन जाना चाहता है।......
Waah Waah!! Kya alfaaz hain.. Javed Akhtar style!! :-)
ReplyDeleteHa ha....scribbled these more than a decade back...you know what kind of emotions runs through our mind at that age :-)
ReplyDeletebeautiful beautiful words!!! please do post more from your old diaries...love your poetry :) :)
ReplyDeleteThanx Saher for likint it....u can check out more as in OLd Diary 1, 2 & 3 in my posts!!! :-)
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